sri yantra - sriyantra is one of the most auspicious, important and powerful
yantra. Its archetypal form is a ladder of spiritual ascent for the seeker.
Viewed from the center outwards, the shree yantra is a diagram of the hindu
vision of the evolution of the cosmos. Through devotion and faith, the shree
yantra blesses the worshipper with peace, happiness, popularity, power,
authority, wealth, prosperity & success. This ancient yantra has been used
for millennia by kings, princes, political leaders & men in authority for
attaining fame, power and financial success. It is considered to be beneficial
to humankind especially during kali-yuga to help achieve success, well being,
good fortune, wealth and fame.
Mantra: "om shreem hreem shreem kamle kamalalaye praseed,
praseed, shreem hreem shreem om mahalaxmaye namah"
The shree yantra in the 3 dimensional meru type is popularly made in
panchdatu meru prushtha shree yantra and is a multi pyramid cosmic grid
signifying unlimited abundance and positive powers. This is multi pyramidal
geometry
With 7 pyramid steps sriyantra brings in tremendous amount of affluence,
abundance and harmony “shree” meaning “wealth” and “yantra” - meaning
“instrument” -”the instrument for wealth”. The shree yantra brings about
material and spiritual wealth.
In the cosmos there are three states-creation, establishment and destruction
and these are represented by the three circles in the shree yantra which in
itself is the symbol of the universe or cosmos. When this circle is the
elevated it stands as a symbol of sumerumountain balancing the whole universe
and it contains of all the worlds situated in the sumerumountain, as described
in puranas. It is called “meru prastha shree yantra” and is the best of all.
Shree yantra is the worshipping place of the form of the super goddess,
mahatripur sundari. It is her divine abode. All the 33 crores gods and
goddesses are worshipped in it and all other religious adorations are done
here. It includes all the conducts, all the learning and all the elements. The
fruit of benefit which is gained after performing duly one hundred ashvamegha
yajnas, that can be acquired only by having a sight (vision) of the shree
yantra
श्री महालक्ष्मी यंत्र
श्री महालक्षमी यंत्र की अधिष्ठात्री
देवी कमला हैं,अर्थात इस यंत्र का पूजन करते समय श्वेत
हाथियों के द्वारा स्वर्ण कलश से स्नान करती हुयी कमलासन पर बैठी लक्ष्मी का ध्यान करना
चाहिये,विद्वानों के अनुसार
इस यंत्र के
नित्य दर्शन व पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस यंत्र की पूजा वेदोक्त न होकर
पुराणोक्त है इसमे बिन्दु षटकोण वृत अष्टदल एवं भूपुर की संरचना की गयी है,धनतेरस दीवावली बसन्त पंचमी रविपुष्य एवं इसी प्रकार के शुभ योगों में इसकी
उपासना का महत्व है,स्वर्ण रजत ताम्र से
निर्मित इस यन्त्र
की उपासना से घर व स्थान विशेष में लक्ष्मी का स्थाई निवास माना जाता है।
बगलामुखी यंत्र
बगला दस महाविद्याओं में एक है इसकी
उपासना से शत्रु का नाश होता है,शत्रु
की जिव्हा वाणी व वचनों का स्तम्भन करने हेतु इससे बढकर कोई यंत्र नही है। इस यंत्र के
मध्य बिंदु पर बगलामुखी देवी का आव्हान व ध्यान करना पडता है,इसे पीताम्बरी विद्या भी कहते हैं,क्योंकि इसकी उपासना में पीले वस्त्र पीले पुष्प पीली हल्दी की माला
एवं केशर की खीर का भोग लगता है। इस यंत्र में बिन्दु त्रिकोण षटकोण वृत्त अष्टदल वृत्त षोडशदल एवं
भूपुर की रचना
की गयी है,नुकसान पहुंचाने वाले
दुष्ट शत्रु की जिव्हा हाथ से खींचती हुयी बगलादेवी का ध्यान करते हुये शत्रु के सर्वनाश की कल्पना
की जाती है। इस
यंत्र के विशेष प्रयोग से प्रेतबाधा व यक्षिणीबाधा का भी नाश होता है।
श्रीमहाकाली यन्त्र
शमशान साधना में काली उपासना का बडा
भारी महत्व है,इसी सन्दर्भ में महाकाली यन्त्र का
प्रयोग शत्रु नाश मोहन मारण उच्चाटन आदि कार्यों में किया जाता है। मध्य बिन्दु में पांच
उल्टे त्रिकोण तीन वृत अष्टदल वृत एव भूपुर से आवृत महाकाली का यंत्र तैयार होता है। इस यंत्र का
पूजन करते समय शव
पर आरूढ मुण्डमाला धारण की हुयी कडग त्रिशूल खप्पर व एक हाथ में नर मुण्ड धारण की हुयी
रक्त जिव्हा लपलपाती हुयी भयंकर स्वरूप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्यायें
असफ़ल होजातीं है,तब इस यंत्र का सहारा लिया जाता है।
महाकाली की उपासना अमोघ मानी गयी है। इस यंत्र के नित्य पूजन से अरिष्ट बाधाओं का स्वत:
ही नाश हो जाता है,और शत्रुओं का पराभव होता है,शक्ति के उपासकों के लिये यह यंत्र
विशेष फ़लदायी है। चैत्र आषाढ अश्विन एवं माघ की अष्टमी इस यंत्र के स्थापन और महाकाली
की साधना के लिये
अतिउपयुक्त है।
महामृत्युंजय यंत्र
इस यंत्र के माध्यम से मृत्यु को जीतने
वाले भगवान शंकर की स्तुति की गयी है,भगवान
शिव की साधना अमोघ व शीघ्र फ़लदायी मानी गयी है। आरक दशाओं के
लगने के पूर्व इसके प्रयोग से व्यक्ति
भावी दुर्घटनाओं से बच जाता है,शूल की पीडा सुई की पीडा
में बदल कर निकल जाती है। प्राणघातक दुर्घटना व सीरियस एक्सीडेंट में भी जातक सुरक्षित व बेदाग
होकर बच जाता है। प्राणघातक मार्केश टल जाते हैं,ज्योतिषी
लोग अरिष्ट ग्रह निवारणार्थ आयु बढाने हेतु अपघात और अकाल मृत्यु से बचने के लिये
महामृत्युयंत्र का प्रयोग करना बताते हैं। शिवार्चन स्तुति के अनुसार पंचकोण षटकोण अष्टदल व भूपुर
से युक्त मूल मन्त्र
के बीच सुशोभित महामृत्युंजय यंत्र होता है। आसन्न रोगों की निवृत्ति के लिये एवं दीर्घायु की कामना
के लिये यह यंत्र प्रयोग में लाया जाता है। इस यंत्र का पूजन करने के बाद इसका चरणामृत पीने से
व्यक्ति निरोग रहता
है,इसका अभिषिक्त किया हुआ जल घर में
छिडकने से परिवार में सभी स्वस्थ रहते हैं,घर
पर रोग व ऊपरी हवाओं का आक्रमण नहीं होता है।
कनकधारा यंत्र
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये यह अत्यन्त
दुर्लभ और रामबाण प्रयोग है,इस यंत्र के पूजन से
दरिद्रता का नाश होता है,पूर्व
में आद्य शंकराचार्य ने इसी यंत्र के प्रभाव से स्वर्ण के आंवलों की वर्षा करवायी थी।
यह यंत्र रंक को
राजा बनाने की सामर्थय रखता है। यह यंत्र अष्ट सिद्धि व नव निधियों को देने वाला है,इसमें बिन्दु त्रिकोण एवं दो वृहद कोण
वृत्त अष्टदल वृत्त षोडस
दल एव तीन भूपुर होते हैं,इस
यंत्र के साथ कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अनिवार्य होता है।
श्रीदुर्गा यंत्र
यह श्री दुर्गेमाता अम्बेमाता का यंत्र
है,इसके मूल में नवार्ण मंत्र की प्रधानता है,श्री अम्बे जी का ध्यान करते हुये
नवार्ण मंत्र माला जपते रहने से इच्छित फ़ल की प्राप्ति होती है। विशेषकर संकट के समय
इस यंत्र की प्रतिष्ठा
करके पूजन किया जाता है। नवरात्र में स्थापना के दिन अथवा अष्टमी के दिन इस यंत्र
निर्माण करना व पूजन करना विशेष फ़लदायी माना जाता है,इस यन्त्र पर दुर्गा सप्तशती के अध्याय चार के श्लोक १७ का जाप
करने पर दुख व दरिद्रता
का नाश होता है। व्यक्ति को ऋण से दूर करने बीमारी से मुक्ति में यह यंत्र विशेष
फ़लदायी है।
सिद्धि श्री बीसा यंत्र
कहावत प्रसिद्ध है कि जिसके पास हो बीसा
उसका क्या करे जगदीशा,अर्थात साधकों ने इस यंत्र
के माध्यम से दुनिया की हर मुश्किल आसान होती है,और लोग मुशीबत में भी मुशीबत से ही रास्ता निकाल लेते हैं। इसलिये ही
इसे लोग बीसा
यंत्र की उपाधि देते हैं। नवार्ण मंत्र से सम्पुटित करते हुये इसमे देवी जगदम्बा का
ध्यान किया जाता है। यंत्र में चतुष्कोण में आठ कोष्ठक एक लम्बे त्रिकोण की सहायता से बनाये जाते
हैं,त्रिकोण को मन्दिर के शिखर का आकार दिया जाता है,अंक विद्या के चमत्कार के कारण इस यंत्र
के प्रत्येक चार कोष्ठक
की गणना से बीस की संख्या की सिद्धि होती है। इस यंत्र को पास रखने से ज्योतिषी आदि
लोगों को वचन सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। भूत प्रेत और ऊपरी हवाओं को वश में करने की ताकत
मिलती है,जिन घरों में भूत वास
हो जाता
है उन घरों में इसकी स्थापना करने से उनसे मुक्ति मिलती है।
श्री कुबेर यंत्र
यह धन अधिपति धनेश कुबेर का यंत्र है,इस यंत्र के प्रभाव से यक्षराज कुबेर प्रसन्न होकर
अतुल सम्पत्ति की रक्षा करते हैं। यह यंत्र स्वर्ण और रजत पत्रों से भी निर्मित होता है,जहां लक्ष्मी प्राप्ति की अन्य साधनायें असफ़ल हो जाती हैं,वहां इस यंत्र की उपासना से शीघ्र लाभ
होता है। कुबेर यंत्र
विजय दसमीं धनतेरस दीपावली तथा रविपुष्य नक्षत्र और गुरुवार या रविवार को बनाया जाता
है। कुबेर यंत्र की स्थापना गल्ले तिजोरियों सेफ़ व बन्द अलमारियों में की जाती है। लक्ष्मी
प्राप्ति की साधनाओं में कुबेर यंत्र अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
श्री गणेश यंत्र
गणेश यंत्र सर्व सिद्धि दायक व नाना
प्रकार की उपलब्धियों व सिद्धियों के देने वाला है,इसमें
देवताओं के प्रधान गणाध्यक्ष गणपति का ध्यान किया जाता है। एक हाथ में पास एक अंकुश एक
में मोदक एवं वरद मुद्रा में सुशोभित एक दन्त त्रिनेत्र कनक सिंहासन पर विराजमान गणपति की स्तुति की
जाती है। इस यंत्र
के प्रभाव से और भक्त की आराधना से व्यक्ति विशेष पर रिद्धि सिद्धि की वर्षा करते हैं,साधक को इष्ट कृपा की अनुभूति होने लगती
है। उसके कार्यों
के अन्दर आने वाली बाधायें स्वत: ही समाप्त हो जातीं हैं,व्यक्ति को अतुल धन यश कीर्ति की प्राप्ति होती है,रवि पुष्य गुरु पुष्य अथवा गणेश चतुर्थी को इस यंत्र
का निर्माण किया जाता है,इन्ही
समयों में इस यंत्र की पूजा अर्चना करने पर सभी कामनायें सिद्धि होती हैं।
गायत्री यंत्र
गायत्री की महिमा शब्दातीत है,इस यंत्र को बनाते समय कमल दल पर
विराजमान पद्मासन
में स्थिति पंचमुखी व अष्टभुजा युक्त गायत्री का ध्यान किया जाता है,बिन्दु त्रिकोण षटकोण व अष्टदल व भूपुर
से युक्त इस यंत्र को गायत्री मंत्र से प्रतिष्ठित किया जाता है। इस यंत्र की उपासना से
व्यक्ति लौकिक उपलब्धियों
को लांघ कर आध्यात्मिक उन्नति को स्पर्श करने लग जाता है। व्यक्ति का तेज मेधा व धारणा शक्ति बढ
जाती है। इस यंत्र के प्रभाव से पूर्व में किये गये पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। गायत्री
माता की प्रसन्नता
से व्यक्ति में श्राप व आशीर्वाद देने की शक्ति आ जाती है। व्यक्ति की वाणी और चेहरे पर तेज बढने
लगता है। गायत्री का ध्यान करने के लिये सुबह को माता गायत्री श्वेत कमल पर वीणा लेकर विराजमान
होती है,दोपहर को गरूण पर सवार लाल
वस्त्रों में होतीं है,और
शाम को सफ़ेद बैल पर सवार वृद्धा के रूप में पीले वस्त्रों में ध्यान में आतीं हैं।
दाम्पत्य सुख कारक मंगल यंत्र
विवाह योग्य पुत्र या पुत्री के विवाह
में बाधा आना,विवाह के लिये पुत्र या पुत्री का सीमाओं
को लांघ कर सामाजिक मर्यादा को तोडना विवाह के बाद पति पत्नी में तकरार होना,विवाहित दम्पत्ति के लिये किसी न किसी
कारण से सन्तान
सुख का नहीं होना,गर्भपात होकर सन्तान
का नष्ट हो जाना, मनुष्य का ध्यान कर्ज की तरफ़
जाना और लिये हुये कर्जे को चुकाने के लिये दर दर की ठोकरें खाना,किसी को दिये गये कर्जे का वसूल नहीं होना,आदि कारणों के लिये ज्योतिष शास्त्र में
मंगल व्रत का विधान है,मंगल
के व्रत में मंगल यंत्र का पूजन आवश्यक है। यह यंत्र जमीन जायदाद के विवाद में जाने और घर
के अन्दर हमेशा
क्लेश रहने पर भी प्रयोग किया जाता है,इसके
अलावा इसे वाहन में प्रतिष्ठित
कर लगाने से दुर्घटना की संभावना न के बराबर हो जाती है।
श्री पंचदसी यंत्र
पंचदसी यंत्र को पन्द्रहिया यन्त्र भी
कहा जाता है,इसके अन्दर एक से लेकर नौ तक की
संख्याओं को इस प्रकार से लिखा जाता है दायें बायें ऊपर नीचे
किधर भी जोडा जाये तो कुल योग पन्द्रह
ही होता है,इस यन्त्र का निर्माण राशि के अनुसार होता
है,एक ही यन्त्र को सभी राशियों वाले लोग
प्रयोग नहीं कर
सकते है,पूर्ण रूप से ग्रहों
की प्रकृति के अनुसार इस यंत्र में पांचों तत्वों का समावेश किया जाता है,जैसे जल तत्व वाली राशियां कर्क वृश्चिक
और मीन
होती है,इन राशियों के लिये
चन्द्रमा का सानिध्य प्रारम्भ में और मंगल तथा गुरु का सानिध्य मध्य में तथा गुरु
का सानिध्य अन्त में किया जाता है। संख्यात्मक प्रभाव का असर साक्षात देखने के लिये नौ में चार को
जोडा जाता है,फ़िर दो को जोड कर योग पन्द्रह का लिया
जाता है,इसके अन्दर मंगल को
दोनों रूपों
में प्रयोग में लाया जाता है,नेक
मंगल या सकारात्मक मंगल नौ के रूप में होता है और नकारात्मक मंगल चार के रूप में होता है,तथा चन्द्रमा का रूप दो से प्रयोग में लिया
जाता है। यह यंत्र भगवान शंकर का रूप है,ग्यारह रुद्र और चार
पुरुषार्थ मिलकर ही पन्द्रह का रूप धारण करते है। इस यंत्र को सोमवार या पूर्णिमा
के दिन बनाया जाता है,और उसे रुद्र गायत्री
से एक बैठक में
पन्द्रह हजार मंत्रों से प्रतिष्टित किया जाता है।
सम्पुटित गायत्री यंत्र
वेदमाता गायत्री विघ्न हरण गणपति महाराज
समृद्धिदाता श्री दत्तात्रेय के सम्पुटित मंत्रों द्वारा इस गायत्री यंत्र का निर्माण किया
जाता है। यह यंत्र
व्यापारियों गृहस्थ लोगों के लिये ही बनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य धन,धन से प्रयोग में लाये जाने वाले साधन
और धन को प्रयोग में ली जाने वाली विद्या का विकास इसी यंत्र के द्वारा होता है,जिस प्रकार से एक गाडी साधन रूप में है,गाडी को चलाने की कला विद्या के रूप में
है,और गाडी को चलाने के लिये प्रयोग में ली जाने
वाली पेट्रोल आदि धन के रूप में है,अगर
तीनों में से एक की कमी हो जाती है तो गाडी रुक जाती है,उसी प्रकार से व्यापारियों के लिये दुकान साधन के रूप में है,दुकान में भरा हुआ सामान धन के रूप में है,और उस सामान को बेचने की कला विद्या के
रूप में है,गृहस्थ के लिये भी परिवार का
सदस्य साधन के रूप में है,सदस्य
की शिक्षा विद्या के रूप
में है,और सदस्य द्वारा अपने
को और अपनी विद्या को प्रयोग में लाने के बाद पैदा किया जाने फ़ल धन के रूप में
मिलता है,इस यंत्र की स्थापना
करने के
बाद उपरोक्त तीनों कारकों का ज्ञान आसानी से साधक को हो जाता है,और वह किसी भी कारक के कम होने से पहले ही उसे
पूरा कर लेता है।
श्री नित्य दर्शन बीसा यंत्र
इस यंत्र का निर्माण अपने पास हमेशा
रखने के लिये किया जाता है,इसके अन्दर पंचागुली
महाविद्या का रोपण किया जाता है,अष्टलक्ष्मी
से युक्त इस यंत्र
का निर्माण करने के बाद इसे चांदी के ताबीज में रखा जाता है,जब कोई परेशानी आती है तो इसे माथे से लगाकर कार्य का आरम्भ किया जाता
है,कार्य के अन्दर आने वाली बाधा का निराकरण बाधा
आने के पहले ही दिमाग में आने लगता है,इसे
शराबी कबाबी लोग अपने प्रयोग में नही ला सकते हैं।
Planets
Rahu (the north node of the Moon) and Ketu (the south node of the Moon) are
the shadowy (hypothetical) planets and they rules no sign of zodiac, but Rahu
has authority over Virgo and Ketu has authority over Pisces. So it is also
useful for these zodiac's persons to use these Rudraksha.
The Ten & Eleven Faced Rudraksha are
not under any planetary effect. |
Signification
of Yantras
No. |
Name of the Yantra |
Significance |
1. |
Ambaji
Yantra |
For
Getting a Child and a Safe Progeny |
2. |
Baglamukhi
Yantra |
For
Protection, Victory over Enemies |
3. |
Brihaspati
Yantra |
For
Jupiter Planet |
4. |
Bhairon
Yantra |
For
remove the effects of black magic |
5. |
Bhudha
Yantra |
For Mercury
Planet |
6. |
Bhagya
Vardhak Yantra |
For Good
Luck and Success in politics |
7. |
Bhoot
Pret Nivaran Yantra |
For
Protection, Rid of Ghosts and Evil Spirits |
8. |
Badha
Mukti Yantra |
For
Protection, Victory over Enemies |
9. |
Chandra
Yantra |
For Moon
Planet |
10. |
Durga
Bisa Yantra |
For
Wealth & Property |
11. |
Ganesha
Yantra |
For Good
Luck, For success in work & business |
12. |
Gayatri
Yantra |
For
Education, protects from enemies |
11. |
Hanuman
Yantra |
For
Protection, For business success |
14. |
Kuber
Yantra |
For
Wealth & Money |
15. |
Kanakdhara
Lakshmi Yantra |
For
Wealth, to win unpexpected wealth |
16. |
Kaalsarp
Yantra |
For
reduces the ill-effects of the Kaalsarpa Yoga. |
17. |
Karya
siddhi Yantra |
For
Business, All round Success |
18. |
Ketu
Yantra |
For Ketu
Planet, Success in Business |
19. |
Kanakadhara
Yantra |
For
Wealth,win,Unexpected Wealth |
20. |
Lakshmi
Narayan Yantra |
For Good
Luck and Wealth |
21. |
Lagan
Yog Yantra |
For Good
Luck and Marriage |
22. |
Lakshmi
Prapti Yantra |
For
Wealth,Happiness and Success |
23. |
Mahadurga
Yantra |
For
Wealth and Prosperity |
24. |
Mahakali
Yantra |
For
Overcoming Enemies |
25. |
Mahalakshmi
Yantra |
For Good
Luck and Wealth |
26. |
Mahamritunjay
Yantra |
For
Health and Long Life |
27. |
Mangal
Yantra |
For Mars
Planet |
28. |
Meru
Yantra |
For
Money & Prosperity |
29. |
Maha
Sudarshan Yantra |
For
Protection |
30. |
Mukadama
Vijayi Yantra |
For Win court cases |
31. |
Meru
Chakra Yantra |
For
Business, Increase in Profit |
32. |
Navdurga
Yantra |
For
Business, Rid of business & personal problems |
33. |
Navagraha
Yantra |
For Nine
Planets |
34. |
Nazar
Nivaran Yantra |
For
Protection |
35. |
Rahu
Yantra |
For Rahu
Planet |
36. |
Ram
Raksha Yantra |
For
Protection |
37. |
Rog
Nashak Yantra |
For
Happiness, Free from Fear of Ghosts |
38. |
Shri
Yantra |
For
Wealth |
39. |
Santan
Gopal Yantra |
For
Children, Prevents miscarriage |
40. |
Saraswati
Yantra |
For
Education, develops & increases the knowledge |
41. |
Surya
Yantra |
For
Surya (sun) Planet |
42. |
Shiva
Yantra |
For
Protection from Evil |
43. |
Sri
Saibaba Yantra |
For
Getting a Child and a Safe Progeny |
44. |
Shukra
Yantra |
For
Shukra (Venus) Planet |
45. |
Shubh Labh
Yantra |
For
Business, Increase income & Profit |
46. |
Sani
Yantra |
For
Shani (Saturn) Planet |
47. |
Shatru
Nashak Yantra |
For
Protects from Accidents and Enemies |
48. |
Vashikaran
Yantra |
For
Love, Attraction |
49. |
Vyapara
Vridhdhi Yantra |
For
Business, Increase in Business Profits |
50. |
Vidya
Dayak Yantra |
For
Education |
51. |
Vaibhav
Lakshmi Yantra |
For
business, Rid of business & personal problems |
52. |
Vishnu
Yantra |
For Success,
Health, Family, Wealth |
53. |
Vahana
Durghatna Yantra |
For
Protection from accidents, For Health |
54. |
Vaastu
Devta Yantra |
For Good
Luck, Remove ill-effects of Vaastu |
55. |
Vaastu
Dosh Nivaran Yantra |
For Good
Luck, Remove ill-effects of Vaastu |
|